शनिवार, ११ जानेवारी, २०१४

तू गंगा की मौज, मैं...





अकेली मत जईयो, राधे जमुना के तीर

तू गंगा की मौज, मैं जमुना का धारा
हो रहेगा मिलन ये हमारा तुम्हारा

अगर तू हैं सागर तो मझधार मैं हूँ 
तेरे दिल की कश्ती का पतवार मैं हूँ 
चलेगी अकेले ना तुम से ये नैय्या
मिलेगी ना मंज़िल तुम्हे बिन खेवय्या
चले आओ जी, चले आओ जी
चले आओ मौजों का लेकर सहारा

भला कैसे टूटेंगे बंधन ये दिल के
बिछड़ती नहीं मौज से मौज मिल के
छूपोगे भंवर में तो छूपने ना देंगे
डूबो देंगे नैय्या, तुम्हे ढूँढ लेंगे
बनायेंगे हम, बनायेंगे हम
बनायेंगे तूफाँ को एक दिन किनारा

गीतकार: शकिल बदायुनी
संगीतकार नौशाद
गायक: मोहम्मद रफी
चित्रपट: बैजू बावरा

२ टिप्पण्या:

शैलेंद्र रघूनाथ साठे म्हणाले...

survat barich ghasarali aahe. Pudhe khup susahya jhalay.

प्रमोद देव म्हणाले...

राजाभाऊ, सुरुवात घसरलेय हे अगदी खरंय...ती सुधारण्याचा प्रयत्न सुरुच आहे पडद्यामागे...व्यवस्थित जमली की सुधारित आवृती पुन्हा पेश करेन.