मंगळवार, १८ जून, २०१३

अब क्या मिसाल दूँ...



अब क्या मिसाल दूँ
मैं तुम्हारे शवाब की
इन्सान बन गयी हे किरन
माहताब की
अब क्या मिसाल दूँ..

चेहरे मे घुल गया है
हसीं चॉंदनी का नूर
ऑंखों में है चमन की
जवॉं रात का सुरूर
गर्दन है इक झुकी हुई
डाली, डाली गुलाब की
अब क्या मिसाल दूँ
मैं तुम्हारे शवाब की
अब क्या मिसाल दूँ

गेसूं खुले तो शाम के
दिल से धुऑं उठे
छू ले कदम तो झुकके
ना फिर आसमां उठे
सौ बार  झिलमिलाये
शमां, शमां आफताब की
अब क्या मिसाल दूँ

दीवार-ओ- दर का रँग ये
ऑंचल ये  पैरहन
घर का मेरे चराग है
बूटा सा ये बदन
तस्वीर हो तुम्हीं मेरे
जन्नत के, जन्नत के ख्वाब की
अब क्या मिसाल दूँ
मैं तुम्हारे शवाब की
इन्सान बन गयी हे किरन
माहताब की
अब क्या मिसाल दूँ..


गीतकार: मजरूह सूलतापुरी
संगीतकार: रोशन
गायक मोहम्मद रफी
चित्रपट: आरती

२ टिप्पण्या:

aruna म्हणाले...

नेहेमीप्रमाणेच सुंदर rendition.

प्रमोद देव म्हणाले...

धन्यवाद अरूणाताई!