मोहम्मद रफी ह्यांच्या मखमली आवाजातले हे गीत माझ्या अनेक आवडत्या गीतांपैकी एक....मीही गाण्याचा प्रयत्न केलाय...ऐकून सांगा कितपत जमलंय ते.
चौदवींका चॉंद हो, या आफताब हो
जो भी हो तुम खुदा की कसम, लाजबाब हो
जुल्फे है जैसे कॉंधे पे बादल झुके हुये
ऑंखे हैं जैसे मय के पयाले भरे हुये
मस्ती है जिसमें प्यारकी तुम, वोह शराब हो
चेहरा है जैसे झिलमे खिलता हुआ कंवल
या जिंदगी के साझपे छेडी हुई गझल
जाने बहार तुम किसी शायर का ख्वाब हो
होठोंपे खेलती हैं तबस्सूम की बिजलियॉं
सजदे तुम्हारी राहमें करती हैं कैकशॉं
दुनिया-इ-हुस्नो-इश्क का तुम ही शबाब हो
गीत: शकील बदायुनी
संगीत: रवि
गायक: मोहम्मद रफी
चित्रपट: चौदवींका चॉंद
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