रहे ना रहे हम महका करेंगे बन के कली, बन के सबा, बाग-ए-वफ़ा में मौसम कोई हो इस चमन में रंग बन के रहेंगे हम खिरामा चाहत की खुशबू यू ही ज़ुल्फों से उड़ेगी, खीजा हो या बहारें यूँ ही झूमते और खिलते रहेंगे, बन के कली.. खोये हम ऐसे, क्या हैं मिलना, क्या बिछड़ना नहीं हैं याद हम को कूंचे में दिल के जब से आये सिर्फ़ दिल की ज़मीं हैं याद हम को इसी सरजमीं पे हम तो रहेंगे, बन के कली.. जब हम ना होंगे, जब हमारी खाँक़ पे तुम रुकोगे चलते चलते अश्कों से भीगी चाँदनी में इक सदा सी सुनोगे चलते चलते वही पे कही, हम तुम से मिलेंगे, बन के कली.. गीतकार: मजरूह सुलतानपूरी संगीतकार: रोशन गायिका: लता मंगेशकर चित्रपट: ममता
माझी,गाण्याची,स्वत:ची अशी वेगळी शैली आहे...आपल्याला आवडली तर आनंदच आहे...नाही आवडली तरी खंत नाही.
शनिवार, २० जुलै, २०१३
रहे ना रहे हम....
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