गुरुवार, २० फेब्रुवारी, २०१४

मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कसूर हैं...





आप के हसीन रुख़ पे आज नया नूर हैं
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर हैं
आप के निगाह ने कहा तो कुछ जुरूर हैं
मेरा दिल मचल गया तो मेरा क्या कुसूर हैं

खुली लटों की छाँव में खिला खिला ये रूप हैं
घटा से जैसे छन रही, सुबह सुबह की धूप हैं
जिधर नज़र मुड़ी, उधर सुरूर ही सुरूर हैं 

झूकी झूकी निगाह में भी हैं बला की शौखियाँ
दबी दबी हसी में भी तड़प रही हैं बिजलियाँ
शबाब आप का नशे में खुद ही चूर चूर हैं

जहाँ जहाँ पड़े कदम वहा फ़िज़ा बदल गयी
के जैसे सरबसर बहार आप ही में ढल गयी
किसी में ये कशिश कहा जो आप में हुजूर हैं


गीतकार: अंजान
संगीतकार: ओ.पी नय्यर
गायक: मोहम्मद रफी
चित्रपट: बहारें फिर भी आयेंगी

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