दिन ढल जाये, हाय रात ना जाये तू तो ना आये, तेरी याद सताये प्यार में जिनके सब जग छोड़ा, और हुए बदनाम उनके ही हाथो हाल हुआ ये, बैठे हैं दिल को थाम अपने कभी थे, अब हैं पराये ऐसी ही रिमझीम, ऐसी फुहारे, ऐसी ही थी बरसात खुद से जुदा और जग से पराये, हम दोनों थे साथ फिर से वो सावन अब क्यों ना आये? दिल के मेरे पास हो इतने, फिर भी हो कितनी दूर तुम मुझसे,मैं दिल से परेशां, दोनों हैं मजबूर ऐसे में किस को कौन मनाये? गीतकार : शैलेन्द्र, संगीतकार : सचिनदेव बर्मन,गायक : मोहम्मद रफी चित्रपट : गाईड
माझी,गाण्याची,स्वत:ची अशी वेगळी शैली आहे...आपल्याला आवडली तर आनंदच आहे...नाही आवडली तरी खंत नाही.
शुक्रवार, २१ जून, २०१३
दिन ढल जाए...
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