ये चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों का रंग सुनहरा
ये झील सी नीली आँखे, कोई राज हैं इन में गहरा
तारीफ़ करू क्या उस की, जिस ने तुम्हें बनाया
इक चीज़ कयामत भी है, लोगों से सुना करते थे
तुम्हे देख के मैने माना, वो ठीक कहा करते थे
है चाल में तेरी जालिम कुछ ऐसी बला का जादू
सौ बार संभाला दिल को, पर होके रहा बेकाबू
तारीफ़ करू क्या उस की, जिस ने तुम्हें बनाया
हर सुबह किरन की लाली, हैं रंग तेरे गालों का
हर शाम की चादर काली, साया हैं तेरे बालों का
तू बलखाती इक नदियाँ, हर मौज तेरी अंगड़ाई
जो इन मौजो में डूबा, उस ने ही दुनियाँ पाई
तारीफ़ करू क्या उस की, जिस ने तुम्हें बनाया
मैं खोज में हूँ मंज़िल की, और मंज़िल पास है मेरे
मुखड़े से हटा दो आँचल, हो जायें दूर अंधेरे
माना की ये जलवे तेरे, कर देंगे मुझे दीवाना
जी भर के ज़रा मैं देखूं, अंदाज़ तेरा मस्ताना
तारीफ़ करू क्या उस की, जिस ने तुम्हें बनाया
गीतकार: एस.एच.बिहारी
संगीतकार: ओ.पी.नय्यर
गायक: मोहम्मद रफी
चित्रपट: काश्मिर की कली
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